कामकाजी महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश और उनके अधिकार: भारत में कानूनी परिप्रेक्ष्य

कामकाजी महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश और उनके अधिकार: भारत में कानूनी परिप्रेक्ष्य

विषय सूची

भारतीय महिलाओं का कार्यस्थल पर परिवर्तनशील चेहरा

भारत में पिछले कुछ दशकों में कामकाजी महिलाओं की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। पहले जहाँ महिलाएँ मुख्य रूप से घर और परिवार तक ही सीमित रहती थीं, वहीं अब वे शिक्षा, चिकित्सा, आईटी, बैंकिंग, सरकारी सेवाओं से लेकर स्टार्टअप्स तक हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। यह बदलाव केवल महानगरों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में भी महिलाएँ आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने के लिए आगे बढ़ रही हैं।

सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि

भारतीय समाज में पारंपरिक रूप से महिलाओं की भूमिका गृहिणी तक मानी जाती थी। हालांकि अब सामाजिक सोच में बदलाव आया है। माता-पिता अपनी बेटियों को उच्च शिक्षा दिला रहे हैं और वे भी अपने करियर को महत्व देने लगी हैं। इसके बावजूद कई बार सामाजिक दबाव, परिवार की जिम्मेदारियाँ और सुरक्षा की चिंताएँ महिलाओं के कामकाजी जीवन को प्रभावित करती हैं।

कार्यस्थल पर बढ़ती भागीदारी

आजकल कई कंपनियाँ महिला कर्मचारियों के लिए अनुकूल वातावरण बनाने पर ध्यान दे रही हैं। ऑफिसों में डे-केयर सेंटर, फ्लेक्सिबल वर्किंग ऑवर्स, मैटरनिटी लीव जैसी सुविधाएँ मिलने लगी हैं, जिससे महिलाएँ शादी और माँ बनने के बाद भी अपने करियर को जारी रख सकती हैं।

महिलाओं की कार्यक्षेत्र में हिस्सेदारी: एक झलक

क्षेत्र महिला कर्मचारियों का प्रतिशत (2023)
शिक्षा 46%
स्वास्थ्य सेवा 35%
आईटी/सॉफ्टवेयर 32%
सरकारी सेवाएँ 23%
निर्माण/फैक्ट्री 11%
मातृत्व अवकाश क्यों जरूरी?

कामकाजी महिलाओं की संख्या बढ़ने के साथ-साथ उनके अधिकारों को सुनिश्चित करना भी जरूरी हो गया है। विशेष रूप से मातृत्व अवकाश उन्हें न केवल शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहने का मौका देता है, बल्कि परिवार और नौकरी के बीच संतुलन बनाने में मदद करता है। भारत में कानून ने इस दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जिससे महिलाओं को सुरक्षित और सम्मानजनक कार्य वातावरण मिल सके।

2. मातृत्व अवकाश: कानूनी प्रावधानों का अवलोकन

भारत में कामकाजी महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश (Maternity Leave) एक बहुत महत्वपूर्ण अधिकार है, जिससे महिलाएं अपनी गर्भावस्था और नवजात शिशु की देखभाल के लिए पर्याप्त समय पा सकें। इस अधिकार को मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 (Maternity Benefit Act, 1961) के तहत कानूनी रूप से मान्यता दी गई है। समय-समय पर इसमें बदलाव भी किए गए हैं ताकि यह महिलाओं की बदलती जरूरतों के अनुसार बना रहे।

मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 क्या है?

यह अधिनियम भारत में निजी क्षेत्र, सरकारी क्षेत्र, फैक्ट्री, खान, प्लांटेशन और कुछ अन्य संस्थानों में काम करने वाली महिलाओं को मातृत्व लाभ उपलब्ध कराता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि गर्भवती महिला को नौकरी से ना निकाला जाए और उसे वेतन समेत अन्य सुविधाएं मिलती रहें।

मुख्य अधिकार और प्रावधान:

प्रावधान विवरण
मातृत्व अवकाश की अवधि 26 सप्ताह तक (पहले दो बच्चों के लिए), तीसरे बच्चे पर 12 सप्ताह तक का अवकाश
वेतन (Salary) पूरी सैलरी यानी Last Drawn Salary पर आधारित भुगतान
कार्यस्थल पर वापसी की सुविधा महिलाओं को उनके पद पर वापस लेना अनिवार्य है; उन्हें कोई नुकसान नहीं होना चाहिए
स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएँ निःशुल्क मेडिकल चेकअप और देखभाल के अधिकार
दत्तक माता (Adoptive Mothers) 3 महीने का मातृत्व अवकाश यदि बच्चा 3 महीने से छोटा हो तो
सरोगेट माताएँ (Surrogate Mothers) 3 महीने का अवकाश जिस दिन बच्चा जन्म लेता है उस दिन से शुरू होता है
क्रेच सुविधा (Creche Facility) 50 या उससे अधिक कर्मचारियों वाले संस्थानों में अनिवार्य क्रेच सुविधा
कार्यस्थल पर भेदभाव निषेध गर्भावस्था के दौरान महिला कर्मचारी को नौकरी से निकालना या भेदभाव करना गैरकानूनी है

हालिया संशोधन और उनका महत्व

2017 के संशोधन में सबसे बड़ा बदलाव यह हुआ कि मातृत्व अवकाश की अवधि 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दी गई। इसके अलावा दत्तक एवं सरोगेट माताओं को भी विशेष अधिकार दिए गए हैं। इससे भारतीय महिलाओं को अपने बच्चों की देखभाल के लिए ज्यादा समय मिलता है और कार्यस्थल पर उनकी सुरक्षा भी सुनिश्चित होती है।

किन्हें मिलता है ये लाभ?

  • सभी महिलाएं जो किसी ऐसे संस्थान में काम करती हैं जहां 10 या उससे अधिक कर्मचारी हैं।
  • महिला को कम से कम 80 दिनों तक उस संस्था में काम करना जरूरी है।
व्यक्तिगत अनुभव और सुझाव:

मेरे खुद के अनुभव में, जब मेरा बच्चा होने वाला था तब मुझे ऑफिस से पूरा सहयोग मिला। मैंने बिना किसी चिंता के मातृत्व अवकाश लिया और उसके बाद वापस आकर अपने काम में आसानी से जुड़ पाई। अगर आपको किसी प्रकार की दिक्कत आती है तो अपने HR डिपार्टमेंट या श्रम अधिकारी से संपर्क करें। अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहना बहुत जरूरी है, तभी हम सुरक्षित और खुशहाल मातृत्व का अनुभव कर सकते हैं।

कामकाजी महिलाओं के लिए मातृत्व के दौरान अधिकार

3. कामकाजी महिलाओं के लिए मातृत्व के दौरान अधिकार

मातृत्व अवकाश के दौरान वेतन

भारत में कामकाजी महिलाओं को मातृत्व अवकाश के दौरान पूरा वेतन मिलना चाहिए। मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के अनुसार, महिला कर्मचारियों को कम से कम 26 सप्ताह तक सैलरी मिलती है, अगर उनका बच्चा पहली या दूसरी संतान है। तीसरे बच्चे के लिए यह अवधि 12 सप्ताह होती है। इस समय के दौरान महिला को कंपनी की ओर से हर महीने सामान्य वेतन मिलता है, ताकि वह आर्थिक रूप से सुरक्षित रहे।

स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएं

कामकाजी महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान और प्रसव के बाद स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएं उपलब्ध कराई जानी चाहिए। इसमें प्री-नेटल (डिलीवरी से पहले) और पोस्ट-नेटल (डिलीवरी के बाद) मेडिकल चेकअप, दवाइयाँ और अस्पताल में भर्ती होने पर खर्च की भरपाई जैसी सुविधाएं शामिल हैं। कई कंपनियां या संस्थान अपने कर्मचारियों के लिए हेल्थ इंश्योरेंस भी देती हैं जिसमें मातृत्व संबंधी खर्च कवर होते हैं।

मातृत्व अवकाश में मिलने वाली मुख्य सुविधाएँ:

सुविधा विवरण
पूर्ण वेतन 26 हफ्ते तक (पहला-दूसरा बच्चा), 12 हफ्ते (तीसरा बच्चा)
चिकित्सा सुविधा प्रसव से पहले और बाद में मुफ्त जांच व इलाज
नौकरी सुरक्षा अवकाश के दौरान नौकरी छूटने का डर नहीं
विशेष कार्य घंटे ज्यादा शारीरिक मेहनत वाले काम न देना
रोजगार में भेदभाव पर रोक गर्भावस्था या मातृत्व अवकाश पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता

नौकरी में सुरक्षा और भेदभाव से बचाव

भारतीय कानूनों के तहत, मातृत्व अवकाश लेने वाली महिला कर्मचारी की नौकरी सुरक्षित रहती है। यानी कंपनी उसे गर्भावस्था या मातृत्व अवकाश के कारण निकाल नहीं सकती और न ही उसके प्रमोशन या वेतन वृद्धि में भेदभाव कर सकती है। अगर ऐसा होता है तो कर्मचारी कानूनी सहायता ले सकती हैं। इसके अलावा, महिला को वापसी पर वही पद और वेतन मिलना चाहिए जैसा वह छुट्टी पर जाने से पहले था।

महिलाओं के अधिकार:

  • मातृत्व अवकाश के दौरान सेवाओं की निरंतरता बरकरार रहेगी।
  • कोई जबरन ओवरटाइम या कठिन कार्य नहीं दिया जा सकता।
  • छुट्टी खत्म होने के बाद फिर से उसी पद पर लौटने का अधिकार।
  • किसी भी तरह का भेदभाव गैरकानूनी है।
  • अगर आपके अधिकारों का उल्लंघन हो, तो आप श्रम विभाग या अदालत में शिकायत दर्ज करा सकती हैं।

विशेष काम के घंटे एवं अन्य कानूनी अधिकार

गर्भावस्था या डिलीवरी के बाद महिला कर्मचारियों को विशेष सुविधा दी जाती है कि उन्हें भारी वजन उठाने वाले या जोखिम भरे काम न दिए जाएं। साथ ही, उन्हें आरामदायक माहौल मिले इसके लिए कंपनियों को उचित कदम उठाने चाहिए। कुछ संस्थानों में लैक्टेशन ब्रेक (स्तनपान अवकाश) की सुविधा भी दी जाती है जिससे नई मां अपने बच्चे को समय दे सके।

महत्वपूर्ण सुझाव:
  • अगर आपको लगता है कि आपकी कंपनी आपके मातृत्व अधिकारों का पालन नहीं कर रही है, तो संबंधित सरकारी विभाग में शिकायत करें।
  • अपने एम्प्लॉयमेंट लेटर और कंपनी पॉलिसी ध्यान से पढ़ें, ताकि आपको अपने अधिकार पता रहें।
  • अधिक जानकारी के लिए मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961, श्रम मंत्रालय भारत सरकार, या अपने राज्य के श्रम विभाग की वेबसाइट जरूर देखें।

कामकाजी महिलाओं का स्वास्थ्य, सम्मान और उनके अधिकार सुरक्षित रखना हमारा समाज और देश दोनों की जिम्मेदारी है। सही जानकारी और जागरूकता से महिलाएं अपने हक पूरे आत्मविश्वास से पा सकती हैं।

4. ग्रामीण और शहरी भारत: चुनौतियां और असमानताएं

ग्रामीण बनाम शहरी महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश की वास्तविकता

जब हम भारत में कामकाजी महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश और उनके अधिकारों की बात करते हैं, तो ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में बहुत बड़ा अंतर देखने को मिलता है। मेरे व्यक्तिगत अनुभव से कहूं तो, शहरों में रहने वाली महिलाओं को आम तौर पर अपने अधिकारों के बारे में अधिक जानकारी होती है, जबकि गाँवों में अभी भी यह जागरूकता बहुत कम है। यह असमानता न सिर्फ सुविधा के स्तर पर है, बल्कि कानूनों के पालन और सहायता प्राप्त करने में भी साफ़ नजर आती है।

मातृत्व अवकाश की पहुंच: एक तुलना

मापदंड ग्रामीण क्षेत्र शहरी क्षेत्र
कानूनी जानकारी बहुत कम जागरूकता अधिकतर महिलाओं को जानकारी
सरकारी सहायता सीमित, कई योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता बेहतर पहुँच, योजनाओं का लाभ मिलता है
नौकरी की सुरक्षा अस्थिर रोजगार, कोई गारंटी नहीं संगठित क्षेत्र में नौकरी सुरक्षित रहती है
स्वास्थ्य सेवाएँ सीमित स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध हैं अच्छी अस्पताल व क्लिनिक सुविधाएँ मौजूद हैं
सामाजिक दबाव/समर्थन परिवार व समाज की दखलंदाजी ज्यादा होती है कुछ हद तक स्वतंत्रता, सपोर्ट सिस्टम बेहतर है

मुख्य चुनौतियां जो मैंने महसूस कीं:

  • जागरूकता की कमी: कई बार गाँव की महिलाएं यह नहीं जानतीं कि वे मातृत्व अवकाश ले सकती हैं या उनके पास क्या-क्या कानूनी अधिकार हैं।
  • डॉक्यूमेंटेशन का झंझट: सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए कागज़ी प्रक्रिया इतनी जटिल है कि ग्रामीण महिलाएं आसानी से पीछे रह जाती हैं।
  • रोजगार का प्रकार: अधिकतर ग्रामीण महिलाएं असंगठित क्षेत्र (जैसे खेत-मजदूरी या घरेलू काम) में काम करती हैं, जहाँ कानूनी सुरक्षा नाममात्र ही है। शहरी क्षेत्रों में संगठित कंपनियाँ मातृत्व अवकाश देने के लिए बाध्य होती हैं।
  • सामाजिक सोच: गाँवों में अभी भी यह धारणा बनी हुई है कि बच्चे की जिम्मेदारी पूरी तरह माँ पर ही है, जिससे उसे काम छोड़ना पड़ सकता है। शहरों में परिवार और पति का सहयोग अपेक्षाकृत ज्यादा देखने को मिलता है।
  • स्वास्थ्य सेवाएँ: प्रसव पूर्व और पश्चात देखभाल ग्रामीण इलाकों में अक्सर पर्याप्त नहीं होती, जिससे मातृत्व अवकाश का सही लाभ नहीं मिल पाता।

आगे क्या जरूरी है?

मेरे अनुभव के अनुसार, असली बदलाव तब आएगा जब ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों की महिलाओं को समान रूप से जानकारी दी जाएगी और हर स्तर पर सरकारी योजनाओं का आसान लाभ मिलेगा। इसके लिए पंचायत स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम, सरल डॉक्यूमेंटेशन प्रक्रिया और स्थानीय हेल्थ वर्कर्स की मदद अहम भूमिका निभा सकती है। साथ ही, समाज को भी अपनी सोच बदलने की जरूरत है ताकि हर महिला अपने मातृत्व अधिकार पूरी तरह से ले सके।

5. सरकारी और निजी क्षेत्रों में लागू नीतियों की तुलना

भारत में कामकाजी महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश और उनके अधिकारों को लेकर सरकारी और निजी क्षेत्रों में अलग-अलग नीतियाँ अपनाई जाती हैं। मैंने खुद एक कामकाजी माँ होने के नाते इन दोनों क्षेत्रों में अपने अनुभव और दूसरी महिलाओं की कहानियाँ सुनी हैं। अगर आप भी सोच रही हैं कि किस सेक्टर में मातृत्व अवकाश और अधिकार बेहतर तरीके से मिलते हैं, तो चलिए सरल भाषा में समझते हैं।

सरकारी क्षेत्र बनाम निजी क्षेत्र: क्या अंतर है?

सरकारी नौकरियों में महिलाओं को आमतौर पर ज्यादा सुरक्षा और सुविधाएँ मिलती हैं। वहीं, निजी कंपनियों में यह काफी हद तक कंपनी की पॉलिसी पर निर्भर करता है। कई बार निजी संस्थान कानून का पालन पूरी तरह नहीं करते या छुट्टियों को लेकर सख्ती दिखाते हैं। नीचे दिए गए टेबल से आप आसानी से दोनों क्षेत्रों की तुलना कर सकती हैं:

मापदंड सरकारी क्षेत्र निजी क्षेत्र
मातृत्व अवकाश की अवधि 26 सप्ताह (6 महीने), सरकार द्वारा निर्धारित अधिकांश जगह 26 सप्ताह, लेकिन कुछ छोटी कंपनियाँ कम भी दे सकती हैं
भुगतान/सैलरी पूर्ण वेतन के साथ अवकाश अधिकतर कंपनियाँ पूर्ण वेतन देती हैं, लेकिन कहीं-कहीं कटौती हो सकती है
स्वास्थ्य लाभ सरकारी अस्पतालों/डिस्पेंसरी में मुफ्त या नाममात्र खर्च पर सुविधा कंपनी के ग्रुप इंश्योरेंस या प्राइवेट सुविधा, हर कंपनी अलग नीति रखती है
नौकरी की सुरक्षा बहुत मजबूत, मातृत्व अवकाश के दौरान नौकरी से नहीं निकाला जा सकता कानूनन सुरक्षा है, लेकिन छोटे संगठनों में कभी-कभी समस्या आती है
अन्य लाभ (जैसे क्रेच सुविधा) बड़ी सरकारी संस्थाओं में बच्चों की देखभाल के लिए क्रेच सुविधा अनिवार्य है 100+ महिला कर्मचारियों वाली कंपनियों में ही क्रेच अनिवार्य, बाकी जगह मुश्किल से मिलता है

सरकारी क्षेत्र का अनुभव: मेरी कहानी

मेरी एक करीबी दोस्त रेलवे में काम करती है। जब वो माँ बनी तो उसे बिना किसी परेशानी के पूरे 6 महीने का मातृत्व अवकाश मिला, साथ ही ऑफिस के पास बने क्रेच में बच्चे को रखने की सुविधा भी मिली। उसे अपनी नौकरी की चिंता किए बिना घर-ऑफिस-बच्चे सब संभालने का मौका मिला। सच मानिए, सरकारी जॉब्स इस मामले में सबसे भरोसेमंद लगती हैं।

निजी क्षेत्र का अनुभव: असलियत क्या है?

मैं खुद एक निजी संस्था में काम करती थी जब मेरी बेटी हुई थी। कंपनी ने मातृत्व अवकाश तो दिया, लेकिन HR से बार-बार फॉलोअप करना पड़ा और मेरी गैरमौजूदगी में मेरे प्रोजेक्ट दूसरे को दे दिए गए थे। कुछ सहेलियाँ ऐसी भी थीं जिन्हें छोटे स्टार्टअप्स या निजी स्कूलों ने उतना सहयोग नहीं किया जितना कानून कहता है। कई बार हमें अपने अधिकार खुद याद दिलाने पड़ते हैं।

क्या बदलाव जरूरी हैं?

भारत सरकार ने मातृत्व लाभ अधिनियम 2017 लाकर बहुत अच्छा कदम उठाया है, लेकिन असली फर्क तब पड़ेगा जब हर निजी कंपनी इसका ईमानदारी से पालन करेगी। कई महिलाओं को आज भी अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ता है। अगर आप प्राइवेट सेक्टर में हैं, तो अपने एंप्लॉयर से अपनी छुट्टियों और सुविधाओं के बारे में खुलकर पूछें और जरूरत पड़े तो कानूनी सलाह लें।

6. सशक्तिकरण की आवश्यकता और आगे का रास्ता

कामकाजी महिलाओं के लिए कानूनी अधिकारों की जागरूकता

मेरे खुद के अनुभव में, जब मैंने पहली बार मातृत्व अवकाश के लिए आवेदन किया, तो मुझे बहुत सारी जानकारी खुद इकट्ठा करनी पड़ी। हमारे देश में अभी भी कई महिलाएं हैं जिन्हें अपने कानूनी अधिकारों के बारे में पूरी तरह पता नहीं होता। इसीलिए यह बहुत जरूरी है कि हम सभी कामकाजी महिलाओं को उनके अधिकारों की सही जानकारी दें। ऑफिस या फैक्ट्री में काम करने वाली महिलाओं को चाहिए कि वे जानें—मातृत्व लाभ अधिनियम (Maternity Benefit Act), पेड लीव्स, मेडिकल बेनिफिट्स आदि उनके हक में हैं। नीचे एक सरल टेबल दी गई है जिसमें मुख्य अधिकारों का उल्लेख है:

अधिकार क्या मिलता है?
मातृत्व अवकाश 26 सप्ताह तक का पेड लीव (कुछ मामलों में कम)
नौकरी सुरक्षा मातृत्व छुट्टी के दौरान नौकरी से निकाला नहीं जा सकता
स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रसव पूर्व और प्रसव बाद की स्वास्थ्य देखभाल
फादरहुड लीव (कुछ कंपनियों में) पिता को भी कुछ दिन की छुट्टी मिल सकती है

समाज में सकारात्मक बदलाव की जरूरत

यह सच है कि कानून तो बन गए हैं, लेकिन असली बदलाव तभी आएगा जब समाज भी इसे खुले दिल से अपनाएगा। आज भी कई जगहों पर महिलाओं को मातृत्व अवकाश लेने पर ताने सुनने पड़ते हैं या प्रमोशन रोक दिया जाता है। हमें अपने घर, दफ्तर और समाज में ऐसी सोच बदलनी होगी। महिलाओं को अगर बराबरी का मौका मिलेगा, तो वे और आत्मनिर्भर बनेंगी। इसके लिए स्कूल-कॉलेज स्तर पर भी लड़कियों को अधिकारों की जानकारी देना ज़रूरी है।

घर और कार्यस्थल दोनों जगह समर्थन जरूरी

  • घर के सदस्य—पति, सास-ससुर, परिवारजन—को चाहिए कि महिला को सपोर्ट करें।
  • ऑफिस मैनेजमेंट—महिलाओं की छुट्टी या प्रेग्नेंसी को बोझ न समझें, बल्कि उन्हें वापसी के बाद दोबारा अच्छे से काम करने का मौका दें।
  • सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाएं—अधिकारों के प्रचार-प्रसार में भूमिका निभाएं।

तकनीकी एवं सामाजिक नवाचारों की भूमिका

आजकल टेक्नोलॉजी ने जिंदगी आसान बना दी है। मोबाइल एप्स, वेबसाइट्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से महिलाएं अपने अधिकारों की सही जानकारी पा सकती हैं। उदाहरण के तौर पर:

नवाचार/टूल कैसे मदद करता है?
मोबाइल ऐप्स (जैसे Mahila e-Haat) महिलाओं को सरकारी स्कीम्स और हेल्पलाइन नंबर देती हैं।
ऑनलाइन ट्रेनिंग प्रोग्राम्स वर्क फ्रॉम होम ऑप्शंस सीखने में मदद करते हैं।
सोशल मीडिया ग्रुप्स/कम्युनिटी फोरम्स अनुभव साझा करने और सवाल पूछने के लिए प्लेटफॉर्म मिल जाता है।
आगे का रास्ता क्या है?

हम सबका फर्ज़ बनता है कि न सिर्फ अपने अधिकार जानें, बल्कि दूसरों को भी बताएं। नई पीढ़ी की मांओं के लिए यह सफर थोड़ा आसान हो सकता है अगर हम कानूनी ज्ञान, सामाजिक सपोर्ट और तकनीकी मदद तीनों को साथ लेकर चलें। इस दिशा में हर कदम आगे बढ़ाना भारत के कामकाजी महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए जरूरी है।