कोविड-19 काल में भारत में बच्चों का रूटीन टीकाकरण: समस्याएँ और अनुभव

कोविड-19 काल में भारत में बच्चों का रूटीन टीकाकरण: समस्याएँ और अनुभव

विषय सूची

1. भारत में कोविड-19 के दौरान बच्चों के टीकाकरण की स्थिति

कोविड-19 महामारी के समय ने भारत में हर परिवार की दिनचर्या को बदल कर रख दिया, खासकर बच्चों के स्वास्थ्य और उनके टीकाकरण को लेकर। मेरी खुद की एक माँ के रूप में यह अनुभव रहा है कि किस तरह लॉकडाउन, कर्फ्यू और अस्पतालों की व्यस्तता ने हमारे लिए बच्चों का नियमित टीकाकरण करवाना चुनौतीपूर्ण बना दिया। पहले जहाँ हम आसानी से पास के सरकारी या प्राइवेट हेल्थ सेंटर में जाकर बच्चों के टीके लगवा सकते थे, वहीं महामारी के दौरान डर, संक्रमण का खतरा और आवाजाही पर लगी पाबंदियों ने इस प्रक्रिया को काफी मुश्किल बना दिया। बहुत सारे माता-पिता की तरह मेरे मन में भी यह चिंता थी कि कहीं अस्पताल जाने से बच्चा कोविड-19 संक्रमण का शिकार न हो जाए। यही कारण है कि कई बार तय समय पर टीका लगवाने में देरी हो गई।

2. मूल समस्याएँ और चुनौतियाँ

कोविड-19 महामारी के दौरान भारत में बच्चों के रूटीन टीकाकरण को लेकर कई बड़ी समस्याएँ सामने आईं। सबसे पहली चुनौती स्वास्थ्य सेवाओं की रुकावट थी। लॉकडाउन के चलते अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों पर सीमित स्टाफ उपलब्ध था, जिससे नियमित टीकाकरण कार्यक्रम बाधित हो गए। इसके साथ-साथ, बहुत से माता-पिता महामारी के डर से अपने बच्चों को अस्पताल या टीकाकरण केंद्र ले जाने में हिचकिचा रहे थे। यह डर न केवल वायरस संक्रमण का था, बल्कि कई बार जानकारी की कमी और अफवाहों के कारण भी बढ़ गया था।

टीकाकरण केंद्रों तक पहुँच में बाधाएँ

ग्रामीण इलाकों और छोटे कस्बों में टीकाकरण केंद्रों तक पहुँचना पहले से ही एक चुनौती थी, लेकिन कोविड-19 काल में यात्रा प्रतिबंधों और परिवहन की सीमित उपलब्धता ने इस समस्या को और गंभीर बना दिया। बहुत से माता-पिता, खासकर महिलाएं, जो खुद सार्वजनिक वाहन इस्तेमाल नहीं कर सकती थीं, वे बच्चों को समय पर टीका नहीं दिला पाए।

महामारी के दौरान प्रमुख समस्याएँ

समस्या विवरण
स्वास्थ्य सेवाओं की रुकावट स्टाफ की कमी, सीमित समय, प्राथमिकता कोविड मरीजों को दी गई
माता-पिता का डर संक्रमण का खतरा, अफवाहें, जानकारी की कमी
टीकाकरण केंद्रों तक पहुँच यात्रा प्रतिबंध, परिवहन की अनुपलब्धता, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में
व्यक्तिगत अनुभव

मेरे अपने अनुभव में, जब मैंने अपनी बेटी का डिप्थीरिया-टिटनस का टीका लगवाने के लिए सरकारी अस्पताल जाना चाहा तो वहाँ लंबी कतार थी और स्टाफ भी बहुत कम था। आसपास की माताएँ आपस में चर्चा कर रही थीं कि क्या अब टीका लगवाना सुरक्षित है या कुछ महीनों के लिए टाल देना चाहिए। यह असमंजस और डर लगभग हर परिवार के मन में घर कर गया था। इन सब चुनौतियों ने हमें मजबूर किया कि हम अपने बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर अतिरिक्त सतर्क रहें और समय-समय पर विश्वसनीय स्रोतों से सलाह लें।

माता-पिता और परिवारों के व्यक्तिगत अनुभव

3. माता-पिता और परिवारों के व्यक्तिगत अनुभव

टीकाकरण करवाने की कोशिश में माता-पिता द्वारा झेली गई चुनौतियाँ

कोविड-19 महामारी के दौरान भारत में बच्चों का नियमित टीकाकरण करवाना हर माता-पिता के लिए एक अलग ही संघर्ष बन गया। लॉकडाउन, सार्वजनिक परिवहन की कमी और अस्पतालों में संक्रमण के डर ने हमें कई बार असमंजस में डाल दिया। हमारे जैसे कई परिवारों ने अपने बच्चों को समय पर टीके दिलवाने के लिए स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र या निजी क्लीनिक तक जाने की हिम्मत जुटाई, लेकिन वहां भी लंबी कतारें, सोशल डिस्टेंसिंग की चिंता और कभी-कभी टीकों की अनुपलब्धता ने स्थिति को और जटिल बना दिया। मेरे पड़ोस की अनीता जी बताती हैं कि उन्होंने कई बार अपॉइंटमेंट लिए, लेकिन हर बार कोविड केस बढ़ने पर उन्हें रद्द करना पड़ा।

परिवारों के अनुभव: डर, दुविधा और उम्मीदें

हमारे समाज में बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर हमेशा चिंता रही है, लेकिन महामारी ने इस चिंता को डर और दुविधा में बदल दिया। कई परिवारों ने यह सोचकर टीकाकरण टाल दिया कि कहीं बच्चा अस्पताल जाकर कोरोना संक्रमित न हो जाए। वहीं कुछ माता-पिता ने डॉक्टर से फोन पर सलाह लेकर घर पर ही प्राथमिक देखभाल करना बेहतर समझा। एक माँ ने साझा किया कि उन्हें लगातार डर लगा रहता था कि कहीं देर से टीका लगवाने से बच्चे की इम्युनिटी कमजोर न पड़ जाए। हालांकि, जब धीरे-धीरे हालात सामान्य होने लगे तो उम्मीद जगी और हम सबने मिलकर बच्चों के टीकाकरण पर फिर से ध्यान देना शुरू किया। सामूहिक रूप से यह अनुभव हमें यह सिखाता है कि विपरीत परिस्थितियों में भी माता-पिता बच्चों की सुरक्षा के लिए हर संभव प्रयास करते हैं, और भारतीय समाज में परिवारों की आपसी मदद व समर्थन की भावना कितनी मजबूत है।

4. सरकारी उपाय और सामुदायिक प्रवाह

कोविड-19 महामारी के दौरान भारत में बच्चों के रूटीन टीकाकरण को जारी रखने के लिए सरकार और स्थानीय समुदायों ने कई महत्वपूर्ण पहल की। जैसे ही लॉकडाउन ने स्वास्थ्य सेवाओं को बाधित किया, वैसे ही केंद्र और राज्य सरकारों ने मिलकर कुछ ठोस कदम उठाए। सबसे पहले, स्वास्थ्य मंत्रालय ने टीकाकरण शिविरों की संख्या बढ़ाई और ग्रामीण इलाकों में पोर्टेबल वैक्सीनेशन यूनिट्स भेजीं। इसके अलावा, शहरी झुग्गी बस्तियों में विशेष आउटरीच कार्यक्रम चलाए गए ताकि किसी भी बच्चे का टीकाकरण न छूटे।

सरकार की रणनीतियाँ

उपाय लाभ
मोबाइल वैक्सीनेशन वैन दूर-दराज़ के इलाकों तक पहुँच बनी
आशा वर्कर्स को ट्रेनिंग स्थानीय स्तर पर जागरूकता और निगरानी
डिजिटल हेल्थ ट्रैकिंग टीकाकरण से छूटे बच्चों की पहचान आसान हुई

आंगनवाड़ी और आशा वर्कर्स की भूमिका

ग्रामीण भारत में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और आशा वर्कर्स ने घर-घर जाकर माता-पिता को समझाया कि महामारी के बावजूद टीकाकरण जरूरी है। उन्होंने मास्क पहनकर और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए बच्चों को टीका दिलवाने में मदद की। मेरी खुद की अनुभव के अनुसार, जब गांव में भ्रम था कि अस्पताल जाना सुरक्षित नहीं है, तो हमारी स्थानीय आशा दीदी खुद आईं और हमें भरोसा दिलाया कि टीकाकरण केंद्र सुरक्षित हैं। वह हर मां से संपर्क करती रहीं और सुनिश्चित किया कि कोई बच्चा छूट न जाए।

समुदाय आधारित प्रयास

  • ग्राम पंचायत द्वारा नियमित घोषणाएँ करना
  • स्थानीय स्कूलों में अस्थायी टीकाकरण केंद्र खोलना
  • माताओं के समूह बनाकर आपसी सहायता करना
नतीजा क्या रहा?

इन सरकारी और सामुदायिक प्रयासों की वजह से धीरे-धीरे टीकाकरण कवरेज फिर से तेज हुआ। लोगों का भरोसा लौटा, और डर कम हुआ। यह दिखाता है कि जब प्रशासन, हेल्थ वर्कर्स और समुदाय मिलकर काम करें तो किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है।

5. टीकाकरण की निरंतरता का महत्व

बच्चों के लिए नियमित टीकाकरण क्यों ज़रूरी है?

मुझे अपने बेटे की परवरिश के दौरान यह बात बहुत जल्दी समझ आ गई थी कि समय पर और पूरी डोज़ में टीकाकरण बच्चों के लिए कितनी बड़ी सुरक्षा है। भारत जैसे देश में, जहाँ जलवायु, रहन-सहन और सामाजिक परिस्थितियों के कारण कई संक्रामक बीमारियाँ आम हैं, वहाँ बच्चों का नियमित टीकाकरण बेहद महत्वपूर्ण है। माँ होने के नाते मैंने महसूस किया कि हर एक वैक्सीन बच्चे को सिर्फ एक बीमारी से नहीं, बल्कि उससे जुड़ी जटिलताओं से भी बचाती है। पोलियो, डिप्थीरिया, खसरा या काली खाँसी जैसी बीमारियाँ जब-तब समाज में दिखती हैं, ऐसे में अगर हम बच्चों को पूरा टीकाकरण नहीं दिलाते तो वे आसानी से इनका शिकार हो सकते हैं।

कोविड-19 महामारी में टीकों की पूरी डोज़ लेना क्यों जरूरी था?

कोविड-19 काल में जब लॉकडाउन लगा और हॉस्पिटल जाना मुश्किल हो गया, उस समय कई माता-पिता की तरह मैं भी डर गई थी कि कहीं बच्चे का कोई जरूरी टीका छूट न जाए। लेकिन डॉक्टरों ने समझाया कि अगर बीच में कोई डोज़ छूट जाती है तो संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है। रूटीन इम्युनाइजेशन सिर्फ सरकारी नियम नहीं है, बल्कि यह हमारे बच्चों को भविष्य के लिए मजबूत बनाता है। महामारी के दौरान, जब वायरसों और बैक्टीरिया से होने वाली बीमारियों का खतरा और बढ़ गया था, तब समय पर सभी डोज़ लेना बच्चे की इम्यूनिटी को दोगुना मजबूत करता है।

व्यक्तिगत अनुभव: जिम्मेदारी निभाना

मैंने अपने अनुभव से सीखा कि चाहे हालात जैसे भी हों – बारिश हो या महामारी, हमें अपने बच्चों के टीकाकरण शेड्यूल को प्राथमिकता देनी चाहिए। सरकार और स्वास्थ्य कर्मचारियों ने भी कोविड-19 के समय मोबाइल वैन, एएनएम सिस्टर्स और टेलीफोनिक रिमाइंडर जैसे उपाय शुरू किए ताकि बच्चों का टीकाकरण ना रुके। मेरे मोहल्ले में कई माताएँ मिलकर बच्चों को साथ लेकर वैक्सीनेशन सेंटर गईं। इससे एक-दूसरे को सहारा भी मिला और बच्चों की सुरक्षा भी सुनिश्चित हुई।

समाज और परिवार की भूमिका

टीकाकरण सिर्फ व्यक्तिगत जिम्मेदारी नहीं, बल्कि पूरे समाज की जिम्मेदारी है। अगर एक बच्चा बिना टीके के रह जाता है तो वह खुद ही नहीं, आसपास के बच्चों के लिए भी खतरा बन सकता है। ऐसे समय में परिवारवालों और पड़ोसियों का सहयोग बहुत मायने रखता है। मेरी सासू माँ हमेशा मुझे याद दिलाती थीं कि “बेटा, ये एक छोटी सी सुई आगे चलकर बड़ी मुसीबत से बचा सकती है।”

निष्कर्ष

इसलिए कोविड-19 जैसी आपदा में भी बच्चों का नियमित टीकाकरण न सिर्फ उनके लिए ढाल है, बल्कि पूरे समाज की सुरक्षा का आधार भी है। अनुभव कहता है कि चुनौतियाँ आएँगी, लेकिन जिम्मेदार माता-पिता बनने के लिए हमें हर हाल में बच्चों का टीकाकरण जारी रखना चाहिए।

6. भविष्य के लिए सुझाव और संभावनाएँ

कोविड-19 महामारी ने बच्चों के नियमित टीकाकरण कार्यक्रम को बुरी तरह प्रभावित किया, लेकिन अब समय है कि हम आगे की रणनीति पर विचार करें। भारत जैसे विशाल देश में, जहां स्वास्थ्य सुविधाएँ ग्रामीण क्षेत्रों तक सीमित हैं, वहाँ माता-पिता और स्वास्थ्यकर्मियों दोनों को जागरूक रहना होगा।

आगे किस तरह से टीकाकरण कार्यक्रम को जारी रखा जा सकता है?

आने वाले समय में, सरकार को चाहिए कि वह मोबाइल वैक्सीनेशन यूनिट्स को गाँव-गाँव तक पहुँचाए। स्थानीय आंगनबाड़ी केंद्रों का अधिकतम उपयोग हो सकता है, जिससे दूरदराज़ के बच्चों का भी टीकाकरण समय पर हो सके। डिजिटल प्लेटफॉर्म्स जैसे CoWIN ऐप का प्रचार-प्रसार बढ़ाना भी जरूरी है ताकि माता-पिता आसानी से टीकाकरण शेड्यूल जान सकें।

माता-पिता के लिए सुझाव

माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चे का टीकाकरण रिकॉर्ड संभालकर रखें और किसी भी असुविधा या संदेह की स्थिति में नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र से संपर्क करें। अगर कोई डोज छूट गई हो, तो घबराएँ नहीं; बल्कि जल्द से जल्द उसे पूरा करवाएँ। सोशल मीडिया या अफवाहों पर विश्वास करने की बजाय विश्वसनीय स्रोतों से ही जानकारी प्राप्त करें।

स्वास्थ्यकर्मियों के लिए सुझाव

स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की भूमिका सबसे अहम है। उन्हें समुदाय में जाकर लोगों को टीकाकरण के महत्व के बारे में समझाना होगा। अगर लोग डर या झिझक महसूस करें, तो व्यक्तिगत अनुभव साझा करके उनका भरोसा जीतना चाहिए। साथ ही, सभी सुरक्षा उपायों (जैसे मास्क पहनना, सेनिटाइज़ेशन) का पालन करते हुए घर-घर जाकर अभियान चलाना आवश्यक है।

संभावनाएँ

भविष्य में भारत का टीकाकरण तंत्र और मजबूत बन सकता है यदि हम महामारी से मिली सीखों को अपनाएँ। सामुदायिक भागीदारी बढ़ाने, तकनीकी सहायता लेने और हर स्तर पर जागरूकता फैलाने से निश्चित रूप से हम बच्चों को जानलेवा बीमारियों से बचा सकते हैं।