6 से 12 माह की उम्र में शारीरिक विकास की प्रमुख उपलब्धियाँ

6 से 12 माह की उम्र में शारीरिक विकास की प्रमुख उपलब्धियाँ

विषय सूची

मोटर कौशल विकास

6 से 12 माह की उम्र में शिशु के शारीरिक विकास में मोटर कौशल का बहुत महत्व होता है। इस अवधि में बच्चे कई नई शारीरिक क्षमताएँ सीखते हैं और उनका शरीर पहले से अधिक मजबूत और सक्रिय हो जाता है। भारतीय परिवारों में यह समय खासतौर पर उत्साहपूर्ण माना जाता है, क्योंकि शिशु अब अपनी दुनिया को नए तरीके से खोजने लगता है। नीचे दी गई तालिका में 6 से 12 माह की उम्र के बच्चों के सामान्य मोटर कौशल विकास को दर्शाया गया है:

आयु (महीने) प्रमुख मोटर उपलब्धियाँ भारतीय सांस्कृतिक संकेत
6-7 महीने सिर को अच्छी तरह उठाना, पेट के बल पलटना, किसी वस्तु को दोनों हाथों से पकड़ना परिवार में ‘अन्नप्राशन’ संस्कार के समय बच्चा बैठना शुरू करता है
8-9 महीने अपने दम पर बैठना, रेंगना (क्रॉल करना), घुटनों के बल आगे बढ़ना घर के बड़े सदस्य ज़मीन पर दरी बिछाकर खेलाते हैं जिससे बच्चा स्वतंत्र रूप से रेंग सके
10-11 महीने सहारे से खड़ा होना, फर्नीचर पकड़कर चलने की कोशिश करना, छोटी चीज़ें उठाना दादी-नानी बच्चे को दीवार या पलंग का सहारा देती हैं ताकि बच्चा मजबूत हो सके
12 महीने एक या दो कदम बिना सहारे चलने की कोशिश करना, हाथ हिलाना या ताली बजाना परिवार मिलकर बच्चे का पहला कदम देखकर खुशियाँ मनाता है और ‘पहली चाल’ का जश्न मनाया जाता है

मोटर कौशल क्यों महत्वपूर्ण हैं?

मोटर कौशल विकास बच्चे के मस्तिष्क और शरीर के समन्वय को बेहतर बनाता है। यह न केवल बच्चे की स्वतंत्रता बढ़ाता है, बल्कि उसकी जिज्ञासा और आत्मविश्वास को भी बढ़ावा देता है। भारतीय समाज में, जब बच्चा बैठना, रेंगना या चलना शुरू करता है, तो यह पूरे परिवार के लिए गर्व का पल होता है। इस दौरान माँ-बाप और दादी-नानी पारंपरिक गीत गाते हैं या उत्सव मनाते हैं। यह शारीरिक विकास न केवल बच्चे की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है, बल्कि उसके सामाजिक और भावनात्मक विकास में भी मदद करता है।

2. शारीरिक वृद्धि और वजन

6 से 12 माह की उम्र के बच्चों में शारीरिक विकास बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस समय उनके शरीर की लंबाई और वजन दोनों में लगातार वृद्धि होती है। यह वृद्धि बच्चे के अच्छे पोषण और स्वास्थ्य का संकेत देती है।

लंबाई और वजन में सामान्य वृद्धि

इस आयु वर्ग के बच्चों की औसत लंबाई और वजन नीचे दिए गए तालिका में दर्शाया गया है:

आयु (महीने) लड़के: लंबाई (सेमी) लड़कियाँ: लंबाई (सेमी) लड़के: वजन (किलोग्राम) लड़कियाँ: वजन (किलोग्राम)
6 माह 65-67 63-65 7.5-8.5 7-8
9 माह 69-71 67-69 8.5-9.5 8-9
12 माह 74-76 72-74 9.5-10.5 9-10

क्या देखना चाहिए?

  • नियमित बढ़ोतरी: बच्चे की लंबाई और वजन हर महीने थोड़ा-थोड़ा बढ़ना चाहिए। अगर अचानक बढ़ोतरी रुक जाए या कम हो जाए, तो डॉक्टर से सलाह लें।
  • संतुलित आहार: बच्चे को मां का दूध या उपयुक्त शिशु आहार देना जरूरी है, जिससे उसकी वृद्धि अच्छी बनी रहे।
  • स्वास्थ्य संकेत: स्वस्थ बच्चे का रंग गुलाबी, त्वचा चिकनी और आंखें चमकदार होती हैं। ये भी अच्छे पोषण के लक्षण हैं।
जरूरी बातें माता-पिता के लिए:

अगर आपको लगे कि आपके बच्चे का वजन या लंबाई मानक से कम है, तो तुरंत बाल रोग विशेषज्ञ से संपर्क करें। सही समय पर ध्यान देने से बच्चे का संपूर्ण विकास बेहतर हो सकता है। बच्चे की नियमित जांच करवाते रहें ताकि उसकी वृद्धि ठीक ढंग से हो सके।

संवेदी विकास

3. संवेदी विकास

6 से 12 माह की उम्र में शिशु का संवेदी विकास बहुत तेजी से होता है। इस समय के दौरान, शिशु अपनी दृष्टि (आंखों से देखना), सुनना, छूना, स्वाद और गंध जैसी इंद्रियों का उपयोग करना सीखते हैं। उनके आस-पास की दुनिया को महसूस करने और समझने की क्षमता बढ़ती है। नीचे दी गई तालिका में मुख्य संवेदी विकास की उपलब्धियाँ दी गई हैं:

इंद्रिय विकास की प्रमुख बातें
दृष्टि (आंखें) शिशु अब रंगों और अलग-अलग आकारों को पहचान सकते हैं। वे अपने परिवार के सदस्यों को दूर से भी पहचान लेते हैं।
सुनना अब शिशु अलग-अलग आवाजों पर प्रतिक्रिया देने लगते हैं। वे अपने नाम पर ध्यान देते हैं और परिचित ध्वनियों को पहचानने लगते हैं।
छूना शिशु चीजों को छूकर उनकी बनावट समझने लगते हैं। वे मुलायम, कठोर या खुरदरी सतहों में अंतर कर पाते हैं।
स्वाद एवं गंध इस उम्र में शिशु नए-नए स्वाद और गंध का अनुभव करते हैं। वे अपनी पसंद और नापसंद बताने लगते हैं, जैसे कुछ चीजें खाने में रूचि दिखाते हैं तो कुछ से मुंह फेर लेते हैं।

संवेदी विकास के साथ-साथ, शिशु अपने आस-पास की चीजों को छूने, देखने और सुनने के लिए उत्सुक रहते हैं। माता-पिता शिशु को रंगीन खिलौने, संगीत और अलग-अलग बनावट वाली वस्तुएँ देकर उनके संवेदी विकास में मदद कर सकते हैं। यह समय शिशु के सीखने और समझने की नींव रखने का सबसे अच्छा समय होता है।

4. स्वास्थ्य और टीकाकरण

6 से 12 माह के बच्चों के लिए भारत में अनिवार्य टीके

इस उम्र में बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो रही होती है, इसलिए समय पर जरूरी टीके लगवाना बहुत जरूरी है। भारत में 6 से 12 माह के बच्चों को पोलियो, खसरा (Measles), डीपीटी (DPT) और विटामिन ए जैसे टीके दिए जाते हैं। ये टीके बच्चों को गंभीर बीमारियों से बचाते हैं और उनकी स्वस्थ वृद्धि में मदद करते हैं। नीचे दी गई तालिका में आप जान सकते हैं कि किस महीने में कौन-सा टीका देना जरूरी होता है:

आयु (माह) टीका लाभ
6-9 माह खसरा (Measles) खसरे से सुरक्षा
6-9 माह डीपीटी बूस्टर (DPT Booster) डिप्थीरिया, काली खाँसी, टिटनस से सुरक्षा
6, 10, 14 सप्ताह व 9 माह पोलियो (OPV/IPV) पोलियो से सुरक्षा
9 माह एवं उसके बाद हर 6 माह पर विटामिन ए रोग प्रतिरोधक क्षमता एवं आंखों की सुरक्षा

नियमित स्वास्थ्य जांच क्यों जरूरी है?

इस उम्र में बच्चों का शारीरिक विकास बहुत तेज होता है। डॉक्टर से समय-समय पर चेकअप करवाने से यह पता चलता है कि बच्चे की वृद्धि सामान्य है या नहीं। इसके अलावा, अगर कोई समस्या जल्दी पकड़ में आ जाए तो उसका इलाज भी जल्दी शुरू किया जा सकता है। डॉक्टर वजन, लंबाई और सिर के घेराव की जांच करते हैं और पोषण संबंधी सलाह भी देते हैं। नियमित चेकअप से माता-पिता को बच्चे की सही देखभाल करने में मदद मिलती है।

5. ठोस आहार की शुरुआत

6 से 12 माह की उम्र के दौरान शिशु का शारीरिक विकास तेजी से होता है और इस समय ठोस आहार (solid food) की शुरुआत करना जरूरी हो जाता है। भारतीय परिवारों में पारंपरिक रूप से 6 माह के बाद माँ-बाप बच्चे के भोजन में धीरे-धीरे नए खाद्य पदार्थ शामिल करते हैं, साथ ही स्तनपान भी जारी रहता है। इससे शिशु को आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं जो उसके संपूर्ण विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं।

आम तौर पर शुरू किए जाने वाले भारतीय पारंपरिक खाद्य पदार्थ

आहार का नाम कैसे दिया जाए स्वास्थ्य लाभ
दाल का पानी हल्का गुनगुना, छना हुआ प्रोटीन व मिनरल्स देता है, पचाने में आसान
मसला हुआ केला अच्छी तरह मैश कर के दें ऊर्जा, फाइबर और पोटैशियम का स्रोत
चावल का पानी (चावल का माढ़) छानकर हल्का गुनगुना दें ऊर्जा व पाचन के लिए अच्छा
सूजी या दलिया की खिचड़ी पतली अवस्था में बनाकर दें कार्बोहाइड्रेट्स व विटामिन्स देता है
सब्जियों की प्यूरी (जैसे गाजर, आलू) उबालकर मैश करें, बिना मसाले के दें विटामिन्स और मिनरल्स मिलता है

ठोस आहार शुरू करने के फायदे

  • बेहतर शारीरिक विकास: ठोस आहार से बच्चों को अतिरिक्त पोषण मिलता है जो हड्डियों और मांसपेशियों की ग्रोथ में मदद करता है।
  • नई स्वाद पहचानने की क्षमता: बच्चों को अलग-अलग स्वाद व खाद्य पदार्थों से परिचय होता है जिससे उनकी खाने की आदतें बेहतर बनती हैं।
  • पाचन तंत्र मजबूत बनता है: हल्के ठोस आहार से बच्चों का पाचन तंत्र धीरे-धीरे मजबूत होने लगता है।
  • इम्यूनिटी बढ़ती है: भारतीय पारंपरिक आहार में कई ऐसे तत्व होते हैं जो बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं।

ठोस आहार देते समय ध्यान देने योग्य बातें

  • एक समय में एक नया आहार ही शुरू करें ताकि एलर्जी या रिएक्शन पता चल सके।
  • आहार पतला और नरम होना चाहिए ताकि बच्चा आसानी से निगल सके।
  • खाना हमेशा ताजा और स्वच्छ रखें। किसी भी प्रकार के मसाले या नमक का इस्तेमाल न करें।
  • बच्चे को जबरदस्ती न खिलाएं, उसकी भूख के अनुसार ही दें।
  • स्तनपान या फार्मूला दूध जारी रखें क्योंकि यह मुख्य पोषण स्रोत बना रहता है।
निष्कर्ष: 6 से 12 माह की उम्र में ठोस आहार की शुरुआत बच्चे के शारीरिक विकास का अहम हिस्सा है और भारतीय पारंपरिक खाद्य पदार्थ इस प्रक्रिया को आसान और पोषक बनाते हैं। माता-पिता को धीरे-धीरे नए आहार शामिल करते हुए बच्चे की जरूरतों और प्रतिक्रियाओं पर ध्यान देना चाहिए।