खिलौनों में प्रयुक्त रंगों और सामग्री की सुरक्षा जाँच

खिलौनों में प्रयुक्त रंगों और सामग्री की सुरक्षा जाँच

विषय सूची

1. खिलौनों में प्रयुक्त रंग और सामग्री: भारतीय सन्दर्भ

भारतीय बाजार में खिलौनों के निर्माण में प्रयुक्त रंगों और सामग्रियों का चयन न केवल उनकी गुणवत्ता और सुरक्षा के आधार पर होता है, बल्कि सांस्कृतिक प्रासंगिकता भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। पारंपरिक भारतीय खिलौनों जैसे लकड़ी के चन्नापट्टना टॉयज, मिट्टी की गुड़िया, या कपड़े से बने सॉफ्ट टॉयज में प्राकृतिक रंगों और जैविक सामग्रियों का व्यापक उपयोग देखने को मिलता है। ये सामग्रियाँ बच्चों के स्वास्थ्य के लिए अपेक्षाकृत सुरक्षित मानी जाती हैं, क्योंकि इनमें हानिकारक रसायनों का प्रयोग न्यूनतम होता है। इसके विपरीत, आधुनिक प्लास्टिक और सिंथेटिक खिलौनों में अक्सर चमकीले रंगों एवं आकर्षक डिज़ाइनों का उपयोग किया जाता है, जो बच्चों को आकर्षित करते हैं। हालाँकि, इन रंगों और सामग्रियों की सुरक्षा को लेकर भारतीय माता-पिता में जागरूकता बढ़ रही है, क्योंकि कभी-कभी इनमें लेड या अन्य हानिकारक रसायन शामिल हो सकते हैं। भारतीय संस्कृति में पारंपरिक खिलौनों को न केवल मनोरंजन का साधन माना जाता है, बल्कि उन्हें शैक्षिक और सांस्कृतिक मूल्यों से भी जोड़ा जाता है। विभिन्न त्योहारों जैसे दिवाली या जन्माष्टमी के दौरान विशिष्ट प्रकार के रंगीन खिलौनों का आदान-प्रदान भी आम बात है। इस प्रकार, भारतीय संदर्भ में खिलौनों के रंग और सामग्री का चुनाव न केवल सुरक्षा मानकों से जुड़ा है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं को भी दर्शाता है।

2. खिलौनों की सुरक्षा के लिए भारत में मानक

भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) की भूमिका

भारत में खिलौनों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) द्वारा कड़े मानक निर्धारित किए गए हैं। BIS टॉयज़ के निर्माण, रंगों एवं सामग्री की गुणवत्ता के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करता है, ताकि बच्चों को सुरक्षित और स्वस्थ उत्पाद मिल सकें। सभी खिलौना निर्माताओं और आयातकों के लिए अनिवार्य है कि वे BIS प्रमाणन प्राप्त करें और IS 9873 तथा IS 15644 जैसे भारतीय मानकों का पालन करें।

सरकारी निकायों द्वारा निर्धारित मुख्य मानक

मानक का नाम मुख्य उद्देश्य
IS 9873 (Part 1) खिलौनों में उपयोग होने वाले यांत्रिक एवं भौतिक गुणों की जांच
IS 9873 (Part 2) खिलौनों में प्रयुक्त सामग्री में ज्वलनशीलता पर नियंत्रण
IS 9873 (Part 3) रंगों व सामग्री में हानिकारक तत्वों जैसे लेड, कैडमियम आदि का परीक्षण
IS 15644 सुरक्षित विद्युत संचालित खिलौनों के लिए निर्देश

BIS प्रमाणन क्यों है जरूरी?

BIS प्रमाणन यह सुनिश्चित करता है कि बाजार में उपलब्ध खिलौने न केवल बच्चों के स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित हैं, बल्कि उनमें प्रयुक्त रंग और अन्य सामग्री भी विषैले रसायनों से मुक्त हैं। इसके अलावा, यह प्रमाणन उपभोक्ताओं को भरोसा दिलाता है कि उत्पाद भारतीय कानून और गुणवत्ता मानकों का पालन करते हैं।

अन्य सरकारी निकायों की भागीदारी

BIS के साथ-साथ केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA), खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) तथा कस्टम विभाग भी खिलौनों की गुणवत्ता और सुरक्षा जांच में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये निकाय समय-समय पर बाजार सर्वेक्षण एवं परीक्षण के जरिए गैर-अनुपालन करने वाले उत्पादों पर सख्त कार्रवाई करते हैं।

हानिकारक रसायन: ध्यान देने योग्य बातें

3. हानिकारक रसायन: ध्यान देने योग्य बातें

खिलौनों के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले रंगों और सामग्री में कई बार ऐसे रसायन पाए जाते हैं जो बच्चों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं। खासतौर पर लेड (सीसा), कैडमियम, पारा और फथलेट्स जैसे रसायन अक्सर सस्ते खिलौनों में मिलाए जाते हैं।

लेड (सीसा)

लेड का इस्तेमाल खिलौनों के रंगों को चमकीला और टिकाऊ बनाने के लिए किया जाता है, लेकिन यह बच्चों के मस्तिष्क विकास और तंत्रिका तंत्र पर गहरा नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। भारत में बीआईएस (BIS) मानकों के तहत लेड की मात्रा को नियंत्रित किया गया है, फिर भी गैर-प्रमाणित या अवैध रूप से आयातित खिलौनों में इसकी उपस्थिति संभव है।

कैडमियम और अन्य भारी धातुएं

कैडमियम और क्रोमियम जैसे भारी धातुएं भी खिलौनों के रंगों या प्लास्टिक में मिलाई जा सकती हैं। ये धातुएं शरीर में जमा होकर किडनी, लिवर और हड्डियों को नुकसान पहुंचा सकती हैं। बच्चों द्वारा खिलौनों को मुंह में डालना या चबाना सामान्य बात है, जिससे ये रसायन सीधे उनके शरीर में प्रवेश कर सकते हैं।

फथलेट्स और प्लास्टिसाइज़र

फथलेट्स प्लास्टिक को मुलायम बनाने के लिए उपयोग किए जाते हैं, विशेषकर पीवीसी (PVC) खिलौनों में। शोध से पता चला है कि फथलेट्स हार्मोनल असंतुलन, श्वसन समस्याएं और अन्य दीर्घकालिक स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकते हैं। भारत सरकार ने बच्चों के खिलौनों में इन रसायनों की सीमा निर्धारित की है, लेकिन खरीदारी करते समय BIS मार्क और प्रमाणपत्र देखना जरूरी है।

क्या करें?

खिलौने खरीदते समय हमेशा ब्रांडेड उत्पादों का चयन करें और BIS या ISI मार्क देखें। बिना प्रमाणपत्र वाले या बेहद सस्ते खिलौने बच्चों की सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक हो सकते हैं। माता-पिता को चाहिए कि वे खिलौनों की पैकेजिंग पर दिए गए रासायनिक तत्वों की जानकारी पढ़ें और संदेह होने पर उसे न खरीदें। इससे बच्चों को हानिकारक रसायनों से बचाया जा सकता है।

4. पैरेंट्स के लिए जाँच के तरीके

भारतीय माता-पिता अपने बच्चों के खिलौनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कुछ सरल और प्रभावी जाँच विधियाँ अपना सकते हैं। ये तरीके न केवल व्यावहारिक हैं, बल्कि भारतीय घरेलू परिस्थितियों में भी आसानी से लागू किए जा सकते हैं। नीचे दिए गए बिंदुओं और तालिका में इन विधियों को विस्तार से समझाया गया है:

खिलौनों की सामग्री और रंगों की प्राथमिक जाँच

  • बाहरी निरीक्षण: सबसे पहले खिलौने की सतह पर दरारें, टूट-फूट या तेज किनारे तो नहीं हैं, यह जांचें।
  • रंग की गुणवत्ता: हल्के गीले कपड़े से खिलौना पोंछें। अगर रंग उतरता है या कपड़े पर आ जाता है, तो वह सुरक्षित नहीं हो सकता।
  • गंध परीक्षण: खिलौने में कोई तीखी या अजीब गंध तो नहीं है, यह सूंघकर जांचें; खराब गुणवत्ता के रंग या प्लास्टिक अक्सर गंध छोड़ते हैं।

आसान घरेलू परीक्षण विधियाँ

जाँच का तरीका कैसे करें क्या पता चलेगा
नाखून से खरोंचना खिलौने की सतह को हल्के से नाखून से रगड़ें अगर रंग निकलता है, तो वह असुरक्षित हो सकता है
पानी में डुबोना खिलौने का छोटा हिस्सा पानी में 10-15 मिनट रखें रंग फैल जाए तो वह सुरक्षित नहीं है
सुगंध पहचानना खिलौने को सूंघें तेज गंध वाले खिलौने हानिकारक हो सकते हैं
छोटे हिस्सों की मजबूती जांचना हल्के दबाव से खिलौने के छोटे हिस्सों को हिलाएं या खींचें अगर वे आसानी से निकल जाएं तो बच्चे के लिए खतरा हो सकता है

IS 9873 मार्किंग और प्रमाणन देखना

  • हमेशा ISI (Indian Standards Institute) मार्क या BIS (Bureau of Indian Standards) प्रमाणित खिलौनों को प्राथमिकता दें। यह मार्किंग उत्पाद की सुरक्षा का प्रमाण देती है।
  • BIS सर्टिफाइड खिलौनों की सूची BIS वेबसाइट पर भी देखी जा सकती है।
निष्कर्ष:

इन सरल तरीकों को अपनाकर भारतीय माता-पिता अपने बच्चों के खिलौनों में प्रयुक्त रंगों और सामग्रियों की सुरक्षा की प्रामाणिकता स्वयं घर पर ही सुनिश्चित कर सकते हैं। इस प्रकार, बच्चों को सुरक्षित और स्वस्थ बचपन देना संभव होगा।

5. सुरक्षित खिलौनों की खरीदारी के सुझाव

भारतीय बाजार में प्रमाणित खिलौनों का चुनाव कैसे करें?

जब आप भारतीय बाजार या ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म्स पर खिलौने खरीदते हैं, तो सबसे पहले यह सुनिश्चित करें कि वे BIS (Bureau of Indian Standards) द्वारा प्रमाणित हों। BIS मार्क वाला खिलौना भारतीय सुरक्षा मानकों के अनुरूप होता है, जिससे बच्चों के लिए उनका उपयोग करना सुरक्षित रहता है।

प्रमाणन और लेबलिंग की जांच करें

खिलौनों की पैकेजिंग पर दिए गए सभी लेबल और प्रमाणपत्र ध्यान से पढ़ें। ISI मार्क, गैर-विषाक्त रंगों और सामग्रियों की जानकारी तथा निर्माता का नाम और पता भी देखना जरूरी है। इससे यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि खिलौना किसी सस्ते या नकली उत्पादक द्वारा नहीं बनाया गया है।

सामग्री और रंगों की पारदर्शिता

उन खिलौनों को प्राथमिकता दें जिनकी सामग्री और प्रयुक्त रंग स्पष्ट रूप से उल्लेखित हों। खासकर ऑनलाइन शॉपिंग करते समय उत्पाद विवरण अच्छी तरह पढ़ें और यदि कोई जानकारी अधूरी लगे तो ग्राहक सेवा से संपर्क करके ही खरीददारी करें। प्लास्टिक, लकड़ी या कपड़े के खिलौने खरीदते समय देखें कि उनमें कोई तेज़ किनारा या छोटी detachable parts न हों, ताकि बच्चों को चोट या घुटन का खतरा न हो।

ब्रांडेड एवं विश्वसनीय दुकानों से खरीदें

हमेशा ऐसे ब्रांड या दुकानों से ही खिलौने खरीदें जो गुणवत्ता और सुरक्षा के लिए प्रसिद्ध हों। ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म्स पर भी कस्टमर रिव्यू और रेटिंग्स जरूर देखें ताकि अन्य खरीदारों के अनुभव जान सकें। लोकल मार्केट में भी उन्हीं दुकानों को चुनें जहां बिकने वाले खिलौनों पर उचित बिल और वारंटी दी जाती हो।

रिटर्न पॉलिसी और ग्राहक सहायता

किसी भी समस्या की स्थिति में सही रिटर्न पॉलिसी वाले प्लेटफ़ॉर्म्स से ही खरीदारी करें, ताकि असुरक्षित या दोषपूर्ण उत्पाद मिलने पर उसे आसानी से बदल सकें। कुल मिलाकर, बच्चों के स्वास्थ्य व सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए प्रमाणित, सुरक्षित और उच्च गुणवत्ता वाले खिलौनों का ही चुनाव करें।

6. स्थानीय ब्रांड्स और शिल्प: क्या हैं विकल्प?

भारतीय पारंपरिक खिलौनों की खासियत

भारत में सदियों से खिलौनों का निर्माण पारंपरिक शिल्प के माध्यम से होता आया है। लकड़ी, कपड़ा, मिट्टी और प्राकृतिक रंगों का उपयोग कर बनाए जाने वाले ये खिलौने न केवल बच्चों के लिए सुरक्षित होते हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति और विरासत को भी दर्शाते हैं। उदाहरण के लिए चन्नापटना (कर्नाटक) के लकड़ी के खिलौने, वाराणसी की लकड़ी की गाड़ियों और राजस्थान की कठपुतलियां देशभर में प्रसिद्ध हैं।

स्थानीय स्तर पर निर्मित हस्तशिल्प खिलौनों के लाभ

स्थानीय शिल्पकारों द्वारा बनाए गए खिलौनों में सिंथेटिक रंगों या हानिकारक रसायनों का प्रयोग बहुत कम होता है। अक्सर ये खिलौने प्राकृतिक रंगों से रंगे जाते हैं जो बच्चों की त्वचा और स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित माने जाते हैं। इसके अलावा, इन खिलौनों का डिज़ाइन पारंपरिक लोक-कला व मूल्य आधारित शिक्षा देने में भी मदद करता है।

कैसे चुनें सुरक्षित स्थानीय ब्रांड्स?

जब आप स्थानीय ब्रांड्स या हस्तशिल्प खिलौने खरीदते हैं तो सुनिश्चित करें कि वे प्रमाणित सामग्री से बने हों। कई भारतीय ब्रांड्स अब BIS (Bureau of Indian Standards) या अन्य सुरक्षा मानकों का पालन करते हैं। उत्पाद विवरण पढ़ें और विक्रेता से निर्माण प्रक्रिया के बारे में पूछें, ताकि आप अपने बच्चे को सुरक्षित और गुणवत्ता-युक्त खिलौना दे सकें।

स्थानीय विकल्प क्यों चुनें?

स्थानीय रूप से निर्मित खिलौनों को चुनना न सिर्फ आपके बच्चे की सुरक्षा सुनिश्चित करता है, बल्कि इससे कारीगरों को भी आर्थिक समर्थन मिलता है। यह भारतीय कुटीर उद्योग को प्रोत्साहित करता है और पारंपरिक शिल्प को संरक्षित रखने में मदद करता है। साथ ही, इन खिलौनों की पुनर्चक्रण क्षमता भी अधिक होती है, जिससे पर्यावरण पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

निष्कर्ष

भारतीय पारंपरिक और स्थानीय स्तर पर बनाए गए हस्तशिल्प खिलौने न केवल सुरक्षित विकल्प प्रदान करते हैं, बल्कि बच्चों को भारतीय संस्कृति से जोड़ने का माध्यम भी बनते हैं। अगली बार जब आप अपने बच्चे के लिए नया खिलौना खरीदें, तो इन स्थानीय विकल्पों पर जरूर विचार करें।