पोषण की कमी और एनीमिया
भारत में महिलाओं में उच्च जोखिम गर्भावस्था के आम कारणों में से एक प्रमुख कारण पोषण की कमी और आयरन की कमी से होने वाला एनीमिया है। जब महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान पर्याप्त पोषक तत्व नहीं मिलते, तो न केवल उनका स्वास्थ्य प्रभावित होता है, बल्कि बच्चे के विकास पर भी बुरा असर पड़ सकता है।
भारत में कुपोषण और एनीमिया की स्थिति
स्थिति | प्रभावित महिलाएं (%) |
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कुपोषण | 22% |
एनीमिया | 50%+ |
ऊपर दिए गए आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में हर दूसरी महिला को एनीमिया की समस्या होती है। यह स्थिति ग्रामीण इलाकों में अधिक पाई जाती है, जहाँ भोजन की विविधता और पौष्टिकता कम होती है।
एनीमिया के लक्षण और प्रभाव
- थकान और कमजोरी महसूस होना
- सांस फूलना या चक्कर आना
- त्वचा का पीला पड़ना
- बच्चे का जन्म के समय कम वजन होना
- गर्भपात या समय से पहले प्रसव का खतरा बढ़ना
क्या करें?
- आयरन युक्त खाद्य पदार्थ जैसे पालक, गुड़, दालें, और हरी सब्जियां खाना चाहिए।
- डॉक्टर द्वारा सुझाए गए आयरन सप्लीमेंट्स लेना जरूरी है।
- संतुलित आहार का सेवन गर्भावस्था के दौरान नियमित रूप से करना चाहिए।
- समय-समय पर खून की जांच करवानी चाहिए ताकि एनीमिया का समय रहते इलाज हो सके।
2. प्रसव पूर्व स्वास्थ्य सेवाओं एवं जागरूकता की कमी
भारत में कई महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान जरूरी प्रसव पूर्व स्वास्थ्य सेवाएं और पर्याप्त जानकारी नहीं मिलती है। यह समस्या खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक देखी जाती है, लेकिन शहरी इलाकों में भी कई महिलाएं इससे प्रभावित होती हैं।
प्रसव पूर्व जांच का अभाव
गर्भावस्था के समय नियमित जांच बहुत जरूरी होती है जिससे माँ और बच्चे के स्वास्थ्य पर नजर रखी जा सके। यदि महिला को समय-समय पर डॉक्टर से जांच नहीं मिलती, तो कई बीमारियों या जटिलताओं का समय रहते पता नहीं चलता, जिससे जोखिम बढ़ जाता है।
स्वास्थ्य शिक्षा की कमी
कई महिलाएं यह नहीं जानती कि गर्भावस्था के समय क्या-क्या सावधानियां बरतनी चाहिए, कब डॉक्टर से मिलना चाहिए, या कौन सी दवाइयाँ लेनी हैं। सही जानकारी और जागरूकता की कमी से भी उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था के मामले बढ़ जाते हैं।
ग्रामीण बनाम शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएँ
क्षेत्र | प्रसव पूर्व सेवाएँ | जागरूकता स्तर |
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ग्रामीण क्षेत्र | सीमित उपलब्धता, दूर अस्पताल, कम प्रशिक्षित स्टाफ | बहुत कम, पारंपरिक विश्वास अधिक |
शहरी क्षेत्र | अधिक सुविधाएँ, लेकिन सभी तक पहुँच नहीं | थोड़ी बेहतर, फिर भी जानकारी की कमी |
प्रमुख कारण:
- स्वास्थ्य केंद्रों की दूरी और पहुंच की समस्या
- आर्थिक स्थिति कमजोर होना
- परिवार और समाज में शिक्षा की कमी
- महिलाओं का स्वयं निर्णय ना ले पाना
- सरकारी योजनाओं की जानकारी न होना
इन्हीं वजहों से भारत में कई महिलाओं को पर्याप्त प्रसव पूर्व जांच, नियमित स्वास्थ्य परीक्षण और स्वास्थ्य शिक्षा नहीं मिल पाती जिसकी वजह से जोखिम बढ़ जाता है।
3. मातृत्व आयु में असमानता (बहुत कम या अधिक उम्र में गर्भावस्था)
भारतीय समाज में मातृत्व की सही आयु को लेकर जागरूकता की कमी है। बहुत कम उम्र (१८ साल से कम) या अधिक उम्र (३५ साल से ऊपर) में गर्भधारण करने से गर्भावस्था जटिल हो सकती है जिससे जनन संबंधी जोखिम बढ़ जाते हैं।
कम उम्र में गर्भधारण के जोखिम
१८ साल से कम उम्र की लड़कियों का शरीर पूरी तरह से विकसित नहीं होता, जिससे उन्हें निम्नलिखित समस्याएं हो सकती हैं:
जोखिम | संभावित समस्या |
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पोषण की कमी | शिशु का वजन कम होना |
शारीरिक विकास अधूरा | डिलीवरी के समय कठिनाई, सिजेरियन रेट बढ़ना |
मानसिक दबाव | तनाव, डिप्रेशन, सामाजिक चुनौतियाँ |
स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएँ | गर्भपात, प्री-टर्म डिलीवरी का खतरा अधिक |
अधिक उम्र में गर्भधारण के जोखिम
३५ साल से ऊपर की महिलाओं को भी गर्भावस्था में कई तरह के खतरे हो सकते हैं:
जोखिम | संभावित समस्या |
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गर्भावधि मधुमेह (Gestational Diabetes) | माँ और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य पर प्रभाव |
उच्च रक्तचाप (Hypertension) | प्रे-एक्लेम्प्सिया, समय से पहले प्रसव का खतरा बढ़ना |
क्रोमोसोमल विकार (जैसे डाउन सिंड्रोम) | बच्चे के विकास संबंधी समस्याएं |
गर्भपात का खतरा ज्यादा होना | गर्भधारण टिकने में समस्या आना |
समाज में क्यों है यह समस्या?
भारत में कई जगहों पर बाल विवाह और देर से शादी आम है। इससे मातृत्व की आयु असमान हो जाती है। साथ ही, सही शिक्षा और हेल्थकेयर न मिलने से महिलाएं सही समय पर प्रेग्नेंसी प्लान नहीं कर पातीं।
4. गर्भावस्था में हाइपरटेंशन और डायबिटीज
हाई ब्लड प्रेशर (गर्भावस्था पूर्व या गर्भावस्था के दौरान)
भारत में कई महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान हाई ब्लड प्रेशर की समस्या हो सकती है। इसे मेडिकल भाषा में प्री-एक्लेम्पसिया या जेस्टेशनल हाइपरटेंशन कहा जाता है। अगर किसी महिला को पहले से ही ब्लड प्रेशर की समस्या है, तो गर्भावस्था के समय यह और भी खतरनाक हो सकता है। हाई ब्लड प्रेशर से मां और बच्चे दोनों को खतरा हो सकता है, जैसे समय से पहले डिलीवरी या बच्चे का वजन कम होना। इसलिए, डॉक्टर की सलाह पर नियमित रूप से ब्लड प्रेशर चेक करवाना जरूरी है।
हाई ब्लड प्रेशर के जोखिम
जोखिम | संभावित असर |
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समय से पहले प्रसव | बच्चा समय से पहले जन्म ले सकता है |
प्लेसेंटा का अलग होना | मां और बच्चे दोनों के लिए खतरा बढ़ता है |
शिशु का वजन कम होना | बच्चे का विकास प्रभावित हो सकता है |
डायबिटीज (गर्भकालीन या पुरानी)
डायबिटीज भी भारत में उच्च जोखिम गर्भावस्था के सामान्य कारणों में से एक है। गर्भावस्था के दौरान जो डायबिटीज होती है, उसे जेस्टेशनल डायबिटीज कहते हैं। अगर महिला को पहले से ही डायबिटीज है, तो यह स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण हो जाती है। सही खानपान, नियमित व्यायाम और डॉक्टर द्वारा दी गई दवाओं का पालन जरूरी होता है। बिना नियंत्रण के डायबिटीज से बच्चा बड़ा आकार का हो सकता है या मां और शिशु दोनों को अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
डायबिटीज के प्रभाव
प्रभाव | संभावित परिणाम |
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बच्चे का वजन ज्यादा होना | नॉर्मल डिलीवरी में कठिनाई आ सकती है |
मां को हाई ब्लड प्रेशर का खतरा बढ़ना | स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएँ बढ़ सकती हैं |
नवजात शिशु में शुगर कम होना | शिशु को जन्म के बाद देखभाल की जरूरत पड़ती है |
5. पर्यावरणीय एवं सामाजिक-आर्थिक कारक
भारत में महिलाओं के लिए उच्च जोखिम गर्भावस्था के कई कारण होते हैं। इनमें से पर्यावरण और सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियाँ बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। आइए समझते हैं कि ये कारक किस तरह से भारतीय महिलाओं की गर्भावस्था को प्रभावित करते हैं।
खराब स्वच्छता
गाँवों और कुछ शहरों में साफ-सफाई की व्यवस्था उचित नहीं होती, जिससे महिलाओं को संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। गर्भावस्था के दौरान यदि महिला को कोई संक्रमण हो जाए तो यह माँ और बच्चे दोनों के लिए खतरनाक हो सकता है। साफ पानी, स्वच्छ शौचालय और अच्छे सफाई साधनों की कमी इस समस्या को बढ़ा देती है।
उचित स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी
अनेक क्षेत्रों में अच्छी स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध नहीं हैं। दूर-दराज़ इलाकों में डॉक्टर या नर्स की कमी, समय पर जाँच न होना, और ज़रूरी दवाइयों का अभाव भी गर्भवती महिलाओं के लिए खतरे का कारण बनता है। कई बार महिलाएँ अस्पताल तक पहुँच ही नहीं पातीं, जिससे उनका और बच्चे का स्वास्थ्य जोखिम में पड़ जाता है।
गरीबी
गरीबी भी एक मुख्य कारण है। गरीब परिवारों में पोषण की कमी, पर्याप्त देखभाल न मिलना, और ज़रूरी दवाओं का खर्च न उठा पाना जैसी समस्याएँ सामने आती हैं। इससे महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान शारीरिक कमजोरी, एनीमिया या अन्य बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है।
गरीबी से जुड़ी समस्याएँ
समस्या | प्रभाव |
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पोषण की कमी | कमज़ोर प्रतिरक्षा, एनीमिया |
स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच नहीं | समय पर उपचार न मिलना |
आर्थिक दबाव | मानसिक तनाव, स्वास्थ्य अनदेखी |
पारिवारिक या सामाजिक दबाव
कई बार परिवार या समाज से मिलने वाला दबाव भी गर्भवती महिलाओं पर असर डालता है। जल्दी शादी और कम उम्र में माँ बनना, बेटे की चाहत, या काम करने की मजबूरी जैसी बातें भी उनकी सेहत पर असर डाल सकती हैं। कई जगहों पर महिलाओं को खुद के स्वास्थ्य निर्णय लेने की स्वतंत्रता भी नहीं होती, जिससे उनका जोखिम बढ़ जाता है।